क्यों NATO से इतना डरते हैं पुतिन, क्या NATO में जाने पर यूक्रेन की तरह फिनलैंड पर हमला कर देगा रूस
यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच दशकों तक तटस्थ रहने वाले फिनलैंड और स्वीडन ने NATO में शामिल होने की घोषणा की है। फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन और राष्ट्रपति सौली नीनिस्टो ने गुरुवार को कहा कि NATO की सदस्यता के लिए जल्द ही आवेदन दाखिल करेंगे। हालांकि, इस ऐलान के बाद रूस ने फिनलैंड और स्वीडन को अंजाम भुगतने की धमकी दी है।
रूस ने इससे पहले NATO में शामिल होने पर फिनलैंड के पास परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात करने की धमकी दी थी। ऐसे फिनलैंड के ऐलान के बाद माना जा रहा है रूस बौखलाहट में कुछ बड़ा कदम उठा सकता है।
ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है NATO जिसमें फिनलैंड शामिल होना चाहता है? रूस यूरोप में NATO के विस्तार का विरोध क्यों कर रहा है? कैसे NATO के चलते ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था?
क्या है NATO जिसमें फिनलैंड शामिल होना चाहता है?
NATO का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है। 4 अप्रैल 1949 को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत 12 देशों ने सोवियत यूनियन का मुकाबला करने के लिए इसकी स्थापना की थी। NATO में अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं। इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी NATO देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है। NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।
फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन और राष्ट्रपति सौली नीनिस्टो ने गुरुवार को NATO में बिना देर किए शामिल होने को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। इसके कई संकेत पहले से ही मिल रहे थे, खासतौर से यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद। फिनलैंड में हाल ही में कराए एक सर्वे में देश के 76% लोग इस कदम के पक्ष में थे।
फिनलैंड ने कहा है कि NATO की सदस्यता उसकी सुरक्षा को मजबूत करेगी। हालांकि इस साल जनवरी में जब रूसी सेना यूक्रेन से लगी सीमा के पास जमा हो रही थी तो फिनलैंड की प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनके देश के NATO से जुड़ने की संभावना बहुत कम है।
रूस यूरोप में NATO के विस्तार का विरोध क्यों कर रहा है?
NATO का विस्तार रूस के लिए संवेदनशील मुद्दा है। वह इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताता है। यूक्रेन पर हमले के लिए भी वह इसे बड़ी वजह बताता है। रूस की 1300 किमी लंबी सीमा फिनलैंड से मिलती है। उसके लिए फिनलैंड एक बफर जोन है। रूस कतई नहीं चाहता कि NATO उसके इतने करीब आए। इसीलिए रूस, फिनलैंड के भी NATO में जाने का विरोध करता है।
फिलहाल नाटो के सदस्य देशों नॉर्वे, पोलैंड, एस्टोनिया, लातिविया, लिथुआनिया की रूस के साथ करीब 1,200 किलोमीटर लंबी सीमा है। अगर फिनलैंड भी NATO में आ जाता है, तो यह बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।
रूस और फिनलैंड का इतिहास क्या रहा है?
रूस ने फिनलैंड पर कई बार हमला किया था और यहां तक कि 19वीं सदी की शुरुआत से 1917 तक इसे एक ऑटोनॉमस डची के रूप में शामिल भी कर लिया था। फिनलैंड पर रूस का आखिरी हमला नवंबर 1939 में हुआ था। फिनलैंड रूसी आक्रमण के खिलाफ सैन्य प्रतिरोध और तथाकथित फिनिशाइजेशन के कारण सोवियत वर्चस्व के विरुद्ध स्वतंत्र रूप से रह सका। फिनलैंड, सैन्य और विदेश नीति के संदर्भ में अभी तक तटस्थ ही रहा है और NATO में शामिल नहीं हुआ।
इसके साथ ही फिनलैंड वारसा संधि में शामिल भी नहीं हुआ। जबकि, रूस चाहता था कि वह इसमें शामिल हो। हालांकि अब यूक्रेन पर रूस के हमले ने इन देशों की सोच और फैसले को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है।
रूस आखिर NATO और फिनलैंड को धमकी क्यों दे रहा है?
रूस के राष्ट्रपति पुतिन का मानना है कि पश्चिमी देशों ने 1990 में ये वादा किया था कि पूर्व की ओर NATO एक इंच भी विस्तार नहीं करेगा, लेकिन इस वादे को तोड़ा गया। यूक्रेन पर हमला करने के अगले दिन ही रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि अगर फिनलैंड और स्वीडन NATO में शामिल होते हैं, जो कि एक सैन्य संगठन है, तो इसके गंभीर सैन्य और राजनैतिक परिणाम होंगे और रशियन फेडरेशन को जवाबी कदम उठाने पड़ेंगे।
रूस ने 15 अप्रैल को NATO को चेतावनी दी थी कि अगर फिनलैंड NATO में शामिल हुए तो रूस यूरोप के बाहरी इलाके में परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात कर देगा। रूस की सुरक्षा परिषद के डिप्टी चेयरमैन दिमित्री मेदवेदेव ने परमाणु हमले की चेतावनी भी दे दी। उन्होंने कहा था कि परमाणु मुक्त बाल्टिक सागर को लेकर क
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